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वो जो खुदा को मानते है मुझे काफ़िर समझते हैं
रोज़ा रखा है उसने और मुझे रोज़ बदुआ देते हैं
ये कैसी मोहब्बत है कि दीदार-ए-यार भी नही होता
मगर वो वादा तो मिलने का मुझसे रोज़ करते हैं
रंजीत सिंह
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Source by Ranjeet Singh (رنجیت سنگھ)