Shayri.page Team
September 2022
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय। कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥२॥ भावार्थ: व्यवहार में भी साधु को गुरु की आज्ञानुसार ही आना – जाना चाहिए | सद् गुरु कहते हैं कि संत वही है जो जन्म – मरण से पार होने के लिए साधना करता है |
गुरु मूरति आगे खड़ी, दुतिया भेद कुछ नाहिं। उन्हीं कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाहिं॥ ॥ भावार्थ: गुरु की मूर्ति आगे खड़ी है, उसमें दूसरा भेद कुछ मत मानो। उन्हीं की सेवा बंदगी करो, फिर सब अंधकार मिट जायेगा।
सतगुरु मिला जु जानिये, ज्ञान उजाला होय। भ्रम का भाँडा तोड़ी करि, रहै निराला होय॥॥ भावार्थ: सद् गुरु मिल गये – यह बात तब जाने जानो, जब तुम्हारे हिर्दे में ज्ञान का प्रकाश हो जाये, भ्रम का भंडा फोडकर निराले स्वरूपज्ञान को प्राप्त हो जाये|
बार – बार नहिं करि सकै, पाख – पाख करि लेय | कहैं कबीर सों भक्त जन, जन्म सुफल करि लेय || भावार्थ: यदि सन्तो के दर्शन साप्ताहिक न कर सके, तो पन्द्रह दिन में कर लिया करे | कबीर जी कहते है ऐसे भक्त भी अपना जन्म सफल बना सकते हैं |
बैरागी बिरकात भला, गिरही चित्त उदार | दोऊ चूकि खाली पड़े, ताके वार न पार || भावार्थ: साधु में विरक्तता और ग्रस्थ में उदार्तापूर्वक सेवा उत्तम है | यदि दोनों अपने – अपने गुणों से चूक गये, तो वे छुछे रह जाते हैं, फिर दोनों का उद्धार नहीं होता |
माँगन मरण समान है, तेहि दई मैं सीख | कहैं कबीर समझाय को, मति कोई माँगै भीख || भावार्थ: माँगन मरने के समान है येही गुरु कबीर सीख देते है और समझाते हुए कहते हैं की मैं तुम्हे शिक्षा देता हूँ, कोई भीख मत मांगो |
कबीर विषधर बहु मिले, मणिधर मिला न कोय | विषधर को मणिधर मिले, विष तजि अमृत होय || भावार्थ: सन्त कबीर जी कहते हैं कि विषधर सर्प बहुत मिलते है, मणिधर सर्प नहीं मिलता | यदि विषधर को मणिधर मिल जाये, तो विष मिटकर अमृत हो जाता है |
शीलवन्त सुरज्ञान मत, अति उदार चित होय | लज्जावान अति निछलता, कोमल हिरदा सोय || भावार्थ: शीलवान ही देवता है, उसका विवेक का मत रहता है, उसका चित्त अत्यंत उदार होता है | बुराईयों से लज्जाशील सबसे अत्यंत निष्कपट और कोमल ह्रदय के होते हैं |
ऊँचा महल चुनाइया, सुबरन कली दुलाय | वे मंदिर खाली पड़े रहै मसाना जाय || भावार्थ: स्वर्णमय बेलबूटे ढल्वाकर, ऊँचा मंदिर चुनवाया | वे मंदिर भी एक दिन खाली पड़ गये, और मंदिर बनवाने वाले श्मशान में जा बसे |