युगाधार -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi

युगाधार -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi   मज़दूर पृथ्वी की छाती फाड़, कौन यह अन्न उगा लाता बहार? दिन का रवि-निशि की शीत कौन लेता अपनी सिर-आँखों पर? कंकड़ पत्थर से लड़-लड़कर, खुरपी से और कुदाली से, ऊसर बंजर को उर्वर कर, चलता है चाल निराली ले। मज़दूर भुजाएँ …

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