विरासत-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

विरासत-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar अपनी मर्ज़ी से तो मज़हब भी नहीं उस ने चुना था उस का मज़हब था जो माँ बाप से ही उस ने विरासत में लिया था अपने माँ बाप चुने कोई ये मुमकिन ही कहाँ है? उस पे ये मुल्क भी लाज़िम था कि माँ …

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एक और दिन-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

एक और दिन-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar खाली डिब्बा है फ़क़त, खोला हुआ चीरा हुआ यूँ ही दीवारों से भिड़ता हुआ, टकराता हुआ बेवजह सड़कों पे बिखरा हुआ, फैलाया हुआ ठोकरें खाता हुआ खाली लुढ़कता डिब्बा यूँ भी होता है कोई खाली-सा- बेकार-सा दिन ऐसा बेरंग-सा बेमानी-सा बेनाम-सा दिन

कंधे झुक जाते हैं-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

कंधे झुक जाते हैं-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar कंधे झुक जाते हैं जब बोझ से इस लम्बे सफ़र के हांफ जाता हूँ मैं जब चढ़ते हुए तेज चढाने सांसे रह जाती है जब सीने में एक गुच्छा हो कर और लगता है दम टूट जायेगा यहीं पर एक नन्ही सी …

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ग़ालिब-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

ग़ालिब-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar #1. रात को अक्सर होता है,परवाने आकर, टेबल लैम्प के गिर्द इकट्ठे हो जाते हैं सुनते हैं,सर धुनते हैं सुन के सब अश’आर गज़ल के जब भी मैं दीवान-ए-ग़ालिब खोल के पढ़ने बैठता हूँ सुबह फिर दीवान के रौशन सफ़हों से परवानों की राख उठानी …

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 इस मोड़ से जाते हैं-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

इस मोड़ से जाते हैं-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar इस मोड़ से जाते हैं कुछ सुस्त कदम रस्ते कुछ तेज कदम राहें। पत्थर की हवेली को शीशे के घरौंदों में तिनकों के नशेमन तक इस मोड़ से जाते हैं। आंधी की तरह उड़ कर इक राह गुजरती है शरमाती हुई …

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दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म जैसे जंगल में शाम के साये जाते-जाते सहम के रुक जाएँ मुडके देखे उदास राहों पर कैसे बुझते हुए उजालों में दूर तक धूल ही धूल उडती है

खेत के सब्ज़े में-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

खेत के सब्ज़े में-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar खेत के सब्ज़े में बेसुध सी पड़ी है दुबकी एक पगडंडी की कुचली हुई अधमुई सी लाश तेज़ कदमो के तले दर्द से कहराती है दो किनारो पे जवां सिट्टो के चेहरे तककर चुप सी रह जाती है ये सोच के बस …

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ईंधन-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

ईंधन-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar छोटे थे, माँ उपले थापा करती थी हम उपलों पर शक्लें गूँधा करते थे आँख लगाकर – कान बनाकर नाक सजाकर – पगड़ी वाला, टोपी वाला मेरा उपला – तेरा उपला – अपने-अपने जाने-पहचाने नामों से उपले थापा करते थे हँसता-खेलता सूरज रोज़ सवेरे आकर …

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समय-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

समय-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar मैं खंडहरों की ज़मीं पे कब से भटक रहा हूं क़दीम रातों की टूटी क़ब्रों के मैले कुतबे दिनों की टूटी हुई सलीबें गिरी पड़ी हैं शफ़क़ की ठंडी चिताओं से राख उड़ रही है जगह-जगह गुर्ज़ वक़्त के चूर हो गए हैं जगह-जगह ढेर …

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आँसू-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

आँसू-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar #1. अल्फाज जो उगते, मुरझाते, जलते, बुझते रहते हैं मेरे चारों तरफ, अल्फाज़ जो मेरे गिर्द पतंगों की सूरत उड़ते रहते हैं रात और दिन इन लफ़्ज़ों के किरदार हैं, इनकी शक्लें हैं, रंग रूप भी हैं– और उम्रें भी! कुछ लफ्ज़ बहुत बीमार हैं, …

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