क्योंकि साहब मैं अनाथ हूं-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

क्योंकि साहब मैं अनाथ हूं-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri ले कटोरा हाथ में चल दिया हूं फूटपाथ पे अपनी रोजी रोटी की तलाश में मैं भी पढना लिखना चाहता हूं साहब मैं भी आगे बढ़ना चाहता हूं साहब मैं भी खिलौनो से खेलना चाहता हूं साहब रुक जाता हूं …

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कोरोना का कहर-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

कोरोना का कहर-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri कोरोना का कहर क्या लिखूं ये बेवजह कोरोना का कहर लिखूं या लाशों का शहर लिखूं लोगो का तड़पना लिखूं या दवाई के लिए लोगो का भटकना लिखूं या ऑक्सीजन की कमी से लोगो का मरना लिखूं क्या लिखूं क्या लिखूं ये …

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क्या होती है माँ-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

क्या होती है माँ-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri तुझे कुछ होने पर जिसका कलेजा छलनी हो जाता वो होती है माँ खुद जमीन पर सोकर तुझे अपनी बिस्तर पर सुला दे वो होती है माँ खुद कितनी भी तकलीफ में हो बस तुम्हे देखकर मुस्करा दे वो होती है …

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चुनावी मेंढक-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

चुनावी मेंढक-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri फिर से निकलेंगे चुनावी मेंढक इस चुनाव में, वो घोषणाओं के पुल बांधेंगे, लोगो को लालच देकर बहलायेंगे और फुसलायेंगे, सभी जाति-धर्मों के लोगों से अलग -अलग मिलकर उनका दुखड़ा गाएंगे, नीले सियार के वेश में आकर खुद को शेर बताएँगे, चुनाव जीतने …

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तेरी बेवफ़ाई की खुशबू तुम्हारे इशारे से अब आ ही गई है-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

तेरी बेवफ़ाई की खुशबू तुम्हारे इशारे से अब आ ही गई है-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri दिल की बस यही तमन्ना थी, अब लब पर आ ही गई है, होठ कुछ कहे या न कहे इशारे सब कुछ समझा ही गई है, तुमने कहा था की सिर्फ ये दोस्त …

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 लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S बनते देखा है-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S बनते देखा है-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S बनते देखा है, बिजली की चकाचौंध में मैंने बच्चे को बिगड़ते देखा है, जिनमे होती है हिम्मत उनको कुछ कर गुजरते देखा है, जिनको होती है …

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मेरे गुरुवर-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

मेरे गुरुवर-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri दुनिया में होते हैं ये सबसे महान जिसका करते हैं सभी गुणगान “गुरु विश्वामित्र, वशिष्ठ, अत्रि” जिसको पूजते स्वयं भगवान जैसे सूरज आकर करता है अंधकार को दूर उसी तरह ये भी हर किसी की जिंदगी में आकर ज्ञान के प्रकाश को फैलाते …

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छेड़नी है हिन्द में हक़ की लड़ाई-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

छेड़नी है हिन्द में हक़ की लड़ाई-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri छेड़नी है हिन्द में हक़ की लड़ाई फिर से हो जाओ एक हिन्दू, मुस्लिम,सिख,ईसाई किसी के बहकावे में हम नहीं आएंगे भाई अब हम नहीं करेंगे कभी भी लड़ाई बहुत हुई जाति, धर्म और मज़हब के नाम पर …

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दोस्त तू ही सोना चांदी रे-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

दोस्त तू ही सोना चांदी रे-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri दोस्त तू ही सोना चांदी रे….. कभी जो मैं रुठूँ तो तू मनाए कभी जो तू रूठे तो मैं मनाऊं चलती रहे इसी तरह जिन्दगानी रे दोस्त तू ही सोना चांदी रे….. खेल-खेल में कभी तू जीते तो कभी …

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कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri 

कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri कैसा ये रीति-रिवाज बना जो लड़कियों के लिए अभिशाप बना इसकी वजह से न जाने कितनी लड़कियां चढ़ जाती है फांसी क्या तुझमे औकात नहीं है खुद की शादी करने की या तेरे पास पैसे नहीं है खुद …

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