क्योंकि साहब मैं अनाथ हूं-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri
क्योंकि साहब मैं अनाथ हूं-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri ले कटोरा हाथ में चल दिया हूं फूटपाथ पे अपनी रोजी रोटी की तलाश में मैं भी पढना लिखना चाहता हूं साहब मैं भी आगे बढ़ना चाहता हूं साहब मैं भी खिलौनो से खेलना चाहता हूं साहब रुक जाता हूं …