वसल-सरवरिन्दर गोयल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sarvarinder Goyal
वसल-सरवरिन्दर गोयल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sarvarinder Goyal वसल-ए-महबूब से बस क़त्ल-ए-इंतज़ार हुआ, तपस-ओ-आतिश-ए-इश्क़ सर्द-यार हुआ ! मशरूफ-ए-जहाँ थे यादों में तन्हा भी, कसब-ए-इश्क़ था, अब देखो बे-रोज़गार हुआ ! वसल-ए-महबूब ———————- गुलस्तां उजड़ा नहीं था अभी, कि जाड़े आ गए, क़बल-अज़-वक़्त-ए-बहार रसन-ए-जरार हुआ ! वसल-ए-महबूब ———————- तस्कीन-ए-क़ल्ब थी इंतज़ार-ए-यार में, अब न …