प्रभाती -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 2

प्रभाती -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 2 प्रसाद जी की पुण्य स्मृति में भारतीय सुसंस्कृति के गर्व औ अभिमान ! बुद्ध की सबुद्धि के कल्याण- मय आख्यान ! आर्य-गौरव के अलौकिक दिव्य उज्ज्वल गान! राष्ट्रभाषा के विधाता, श्री, सुरभि, सम्मान ! नित्य मौलिक, ऐतिहासिक, चिर- विचारक आप, भावना …

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कुकुरमुत्ता-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 2

कुकुरमुत्ता-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 2 स्फटिक-शिला स्फटिक-शिला जाना था। रामलाल से कहा उमड़ पड़े रामलाल बोले, “कुछ रुकिए, फिलहाल गाड़ी तैयार नहीं; यार, कहीं ठोकर खा जाइएगा। कौन कहे, सही हाथ-पैर लौट आइएगा। कई नाले पड़ते हैं। चढ़ते है, उतरते हैं। नौजवाँ, देहाती, पहलवाँ थकते हैं; तन्दुरुस्त छकते …

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प्रभाती -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 3

प्रभाती -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 3   भावों की रानी से कल्पनामयी ओ कल्यानी! ओ मेरे भावों की रानी! क्यों भिगो रही कोमल कपोल बहता है आंखों से पानी ! कैसा विषाद ? कैसा रे दुख ? सब समय नहीं है अंधकार ! आती है काली रजनी …

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तुलसीदास -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 1

तुलसीदास -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 1 (1) भारत के नभ के प्रभापूर्य शीतलाच्छाय सांस्कृतिक सूर्य अस्तमित आज रे-तमस्तूर्य दिङ्मण्डल; उर के आसन पर शिरस्त्राण शासन करते हैं मुसलमान; है ऊर्मिल जल, निश्चलत्प्राण पर शतदल। (2)   शत-शत शब्दों का सांध्य काल यह आकुंचित भ्रू कुटिल-भाल छाया अंबर पर …

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प्रभाती -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 4

प्रभाती -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 4   कणिका उदय हुआ जीवन में ऐसे परवशता का प्रात । आज न ये दिन ही अपने हैं आज न अपनी रात! पतन, पतन की सीमा का भी होता है कुछ अन्त ! उठने के प्रयत्न में लगते हैं अपराध अनंत …

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तुलसीदास -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 3

तुलसीदास -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 3   (30)   रक्खा उन पर गुरू-भार, विषम जो पहला पद, अब मद-विष-सम; द्विज लोगों पर इस्लाम-क्षम वह छाया, जो देशकाल को आवृत कर फैली है सूक्ष्म मनोनभ पर, देखी कवि ने समझा अब-वर, क्या माया। (31)   इस छाया के भीतर …

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गान्ध्ययन -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 2

गान्ध्ययन -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 2   खादी गीत खादी के धागे-धागे में अपनेपन का अभिमान भरा, माता का इसमें मान भरा, अन्यायी का अपमान भरा। खादी के रेशे-रेशे में अपने भाई का प्यार भरा, मां-बहनों का सत्कार भरा, बच्चों का मधुर दुलार भरा। खादी की रजत …

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तुलसीदास -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 4

तुलसीदास -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 4   (51)   उस प्रियावरण प्रकाश में बँध, सोचता, “सहज पड़ते पग सध; शोभा को लिये ऊर्ध्व औ अध घर बाहर यह विश्व, सूर्य, तारक-मण्डल, दिन, पक्ष, मास, ऋतु, वर्ष चपल; बँध गति-प्रकाश में बुद्ध सकल पूर्वापर।” (52)   “बन्ध के बिना …

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कविता -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 2

कविता -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 2   कोशिश करने वालों की हार नहीं होती लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है मन का विश्वास रगों …

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तुलसीदास -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 2

तुलसीदास -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 2   (16)   तरु-तरु वीरुध्-वीरुध् तृण-तृण जाने क्या हँसते मसृण-मसृण, जैसे प्राणों से हुए उऋण, कुछ लखकर; भर लेने को उर में, अथाह, बाहों में फैलाया उछाह; गिनते थे दिन, अब सफल-चाह पल रखकर। (17)   कहता प्रति जड़ “जंगम-जीवन! भूले थे …

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