ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi

ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi सारी उम्मीद रही जाती है-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi ये बुत फिर …

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सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi

सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को इक कशिश है जो लिए फिरती है दर दर मुझ को अपना तूफ़ाँ न दिखाए वो समुंदर मुझ को चार क़तरे न हुए जिस से मयस्सर मुझ को उम्र भर दैर-ओ-हरम …

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सारी उम्मीद रही जाती है-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi

सारी उम्मीद रही जाती है-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi सारी उम्मीद रही जाती है हाए फिर सुब्ह हुई जाती है नींद आती है न वो आते हैं रात गुज़री ही चली जाती है मजमा-ए-हश्र में रूदाद-ए-शबाब वो सुने भी तो कही जाती है दास्ताँ पूरी न होने पाई ज़िंदगी ख़त्म हुई …

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रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi

रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे हम अँधेरे में किधर जाएँगे अपने शाने पे न ज़ुल्फ़ें छोड़ो दिल के शीराज़े बिखर जाएँगे यार आया न अगर वादे पर हम तो बे-मौत के मर जाएँगे अपने हाथों से पिला दे साक़ी रिंद …

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ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi

ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं ख़ुदा के बंदों को अपना बना के बैठे हैं हमारे सामने जब भी वो आ के बैठे हैं तो मुस्कुरा के निगाहें चुरा के बैठे …

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मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi

मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो वो हाथ उठा रहे हैं कि यारब असर न हो हम को भी ज़िद यही है कि तेरी सहर न हो ऐ शब तुझे ख़ुदा की क़सम …

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निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi

निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी मज़ा दे जाएगी दिल से अगर ऐ सीम-बर होगी तुम्हें जल्दी है क्या जाना अभी तो रात बाक़ी है न घबराओ ज़रा ठहरो कोई दम में सहर होगी अभी से सारे आलम में …

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न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi

न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे ख़ुदा के वास्ते देखो न मुस्कुरा के मुझे सिवाए दाग़ मिला क्या चमन में आ के मुझे क़फ़स नसीब हुआ आशियाँ बना के मुझे अदब है मैं जो झुकाए …

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तंग आ गए हैं क्या करें इस ज़िंदगी से हम-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi

तंग आ गए हैं क्या करें इस ज़िंदगी से हम-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi तंग आ गए हैं क्या करें इस ज़िंदगी से हम घबरा के पूछते हैं अकेले में जी से हम मजबूरियों को अपनी कहें क्या किसी से हम लाए गए हैं, आए नहीं हैं ख़ुशी से हम कम-बख़्त …

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जब कभी नाम-ए-मोहम्मद लब पे मेरे आए है-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi

जब कभी नाम-ए-मोहम्मद लब पे मेरे आए है-ग़ज़लें -बिस्मिल अज़ीमाबादी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bismil Azimabadi जब कभी नाम-ए-मोहम्मद लब पे मेरे आए है लब से लब मिलते हैं जैसे दिल से दिल मिल जाए है जब कोई ग़ुंचा चमन का बिन खिले मुरझाए है क्या कहें क्या क्या चमन वालों को रोना आए है …

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