धनासरी बाणी भगतां की त्रिलोचन ੴ सतिगुर प्रसादि-शब्द -भक्त त्रिलोचन जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Bhakt Trilochan Ji
धनासरी बाणी भगतां की त्रिलोचन ੴ सतिगुर प्रसादि-शब्द -भक्त त्रिलोचन जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Bhakt Trilochan Ji नाराइण निंदसि काइ भूली गवारी ॥ दुक्रितु सुक्रितु थारो करमु री ॥१॥ रहाउ ॥ संकरा मसतकि बसता सुरसरी इसनान रे ॥ कुल जन मधे मिल्यिो सारग पान रे ॥ करम करि कलंकु मफीटसि री ॥१॥ …