कविता-आचार्य संजीव सलिल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Acharya Sanjeev Salil Part 3
कविता-आचार्य संजीव सलिल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Acharya Sanjeev Salil Part 3 फागुनी दोहे महुआ महका, मस्त हैं पनघट औ’ चौपाल बरगद बब्बा झूमते, पत्ते देते ताल सिंदूरी जंगल हँसे, बौराया है आम बौरा-गौरा साथ लख, काम हुआ बेकाम पर्वत का मन झुलसता, तन तपकर अंगार वसनहीन किंशुक सहे, पंच शरों की मार गेहूँ …