उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi

उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi बगुलों के पंख-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi छोटा मेरा खेत-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi आत्मसंतोष-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi अरमान-उमाशंकर जोशी -Hindi …

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बगुलों के पंख-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi

बगुलों के पंख-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi   नभ में पांती बांधे बगुलों के पंख, चुराए लिए जातीं वे मेरी आंखें। कजरारे बादलों की छाई नभ छाया, तैरती सांझ की सतेज श्वेत काया। हौले – हौले जाती मुझे बांध निज माया से। उसे कोई तनिक रोक रक्खो। वह …

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छोटा मेरा खेत-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi

छोटा मेरा खेत-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi छोटा मोरा खेत चौकोना कागज़ का एक पन्ना, कोई अंधड़ कहीं से आया क्षण का बीज बहाँ बोया गया । कल्पना के रसायनों को पी बीज गल गया नि:शेष; शब्द के अंकुर फूटे, पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष। झूमने लगे फल, …

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आत्मसंतोष-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi

आत्मसंतोष-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi नहीं, नहीं, अब नहीं हैं रोनी हृदय की व्यथाएँ जो जगत् व्यथा देता है, उसी जगत् को अब रचकर गाथाएँ व्यथा की वापस नहीं देनी हैं। दुःख से जो हमें पीड़ित करता है बदले में उसे दुःखगीत देना क्यों? हृदय बेचारा हो गया …

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अरमान-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi

अरमान -उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi अगण्य क्षणों में से एकाध को पकड़ समय की अनंत कुहुकिकाएँ उनमें फूंक कर स्फुरित कर जग में, कहते हैं : ‘हमारे ये अमर सुशोभित काव्य !’ अरे, सचमुच यही क्या कवि-ज़िन्दगी ? जीवन के हैं अनेक क्षणपुंज, दिव्य निजानुभव के क्षण …

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कैसी यह मेरे देश में शाश्वत शर्वरी ?-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi

कैसी यह मेरे देश में शाश्वत शर्वरी ?-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi कैसी यह मेरे देश में शाश्वत शर्वरी ? निद्राच्छन्न जन-जन के लोचन मूर्च्छाग्रस्त भोलेभाले ह्रदय लोगों के जानेंगे न क्या ये सब तेरी नृत्यताल से ? द्यौनट, हे विराट् ! मेरे चित्त में घिरी मृत्युमय तमिस्त्रा …

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हे सन्यासी, उर्ध्वमूर्धा अघोर !-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi

हे सन्यासी, उर्ध्वमूर्धा अघोर !-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi हे सन्यासी, उर्ध्वमूर्धा अघोर ! अर्चित है अन्धकार तेरे कपोल-भाल पर अंगो पर लेपी है कौमुदी-श्वेत भस्म। लेकर कमंडलु बंकिम अष्टमी का या पूर्णिमा के छलकते चन्द्रमा का छिड़कता है रस चतुर्दिक् तू जो विचरता है स्वयं निस्पृह आत्मलीन, …

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हे निशीथ, हे शान्तमना तपस्वी !-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi

हे निशीथ, हे शान्तमना तपस्वी !-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi   हे निशीथ, हे शान्तमना तपस्वी ! तजकर अविश्रान्त विराट ताण्डव बैठ जाता है तू कभी आसन लगा हिमाद्रि-सी दृढ़ पालती जमाकर। धू-धू जलती धूनी उत्क्रान्ति की दिगन्त में उड़ते उडु-स्फुलिंग वहाँ निगूढ़ अमा-तमान्तर में करता तू गहन …

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खेलता तू नीहारिका-नीर में-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi

खेलता तू नीहारिका-नीर में-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi खेलता तू नीहारिका-नीर में लेता थाह अथाह खगोल की तू उतरता हमारे रंक-आँगन में। देखा तुझे स्वच्छन्द विहरते व्योम में उझकते झोंपड़ी में अगस्त्य की या खदेड़ते व्योमान्त तक अकेले उस मृग-लुब्ध श्वान को, या देखा खेलते ध्रुव के साथ …

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पैरों से तेरे पृथ्वी दबती है मधुर-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi

पैरों से तेरे पृथ्वी दबती है मधुर-निशीथ-उमाशंकर जोशी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Umashankar Joshi   पैरों से तेरे पृथ्वी दबती है मधुर स्पर्श से तेरे होता है तेज-रोमांच द्यौ को प्रीति-पिरोये दम्पती-ह्रदय में उठता है आवेग का बवंडर, तेरे स्निग्ध सहारे।