अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 4

अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 4 खँडहर के प्रति खँड़हर! खड़े हो तुम आज भी? अदभुत अज्ञात उस पुरातन के मलिन साज! विस्मृति की नींद से जगाते हो क्यों हमें– करुणाकर, करुणामय गीत सदा गाते हुए? पवन-संचरण के साथ ही परिमल-पराग-सम अतीत की विभूति-रज- आशीर्वाद पुरुष-पुरातन का भेजते …

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अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 19

अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 19 सखा के प्रति रोग स्वास्थ्य में, सुख में दुख, है अन्धकार में जहाँ प्रकाश, शिशु के प्राणों का साक्षी है रोदन जहाँ वहाँ क्या आश सुख की करते हो तुम, मतिमन?–छिड़ा हुआ है रण अविराम घोर द्वन्द्व का; यहाँ पुत्र को पिता …

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अर्चना -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 6

अर्चना -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 6 घन तम से आवृत धरणी है घन तम से आवृत धरणी है; तुमुल तरंगों की तरणी है। मन्दिर में बन्दी हैं चारण, चिघर रहे हैं वन में वारण, रोता है बालक निष्कारण, विना-सरण-सारण भरणी है। शत संहत आवर्त-विवर्तों जल पछाड़ खाता है …

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अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 8

अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 8  कहाँ देश है 1 ‘अभी और है कितनी दूर तुम्हारा प्यारा देश?’– कभी पूछता हूँ तो तुम हँसती हो प्रिय, सँभालती हुई कपोलों पर के कुंचित केश! मुझे चढ़ाया बाँह पकड़ अपनी सुन्दर नौका पर, फिर समझ न पाया, मधुर सुनाया कैसा …

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अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 21

अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 21 नासमझी समझ नहीं सके तुम, हारे हुए झुके तभी नयन तुम्हारे, प्रिय। भरा उल्लास था हॄदय में मेरे जब,– काँपा था वक्ष, तब देखी थी तुमने मेरे मल्लिका के हार की कम्पन, सौन्दर्य को!  उक्ति (जला है जीवन यह) जला है जीवन …

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अर्चना -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 7

अर्चना -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 7 वासना-समासीना, महती जगती दीना वासना-समासीना, महती जगती दीना। जलद-पयोधर-भारा, रवि-शशि-तारक-हारा, व्योम-मुखच्छबिसारा शतधारा पथ-हीना। ॠषिकुल-कल-कण्ठस्तुति, दिव्य-शस्य-सकलाहुति, निगमागम-शास्त्रश्रुति रासभ-वासव-वीणा। ये दुख के दिन काटे हैं जिसने ये दुख के दिन काटे हैं जिसने गिन गिनकर पल-छिन, तिन-तिन। आँसू की लड़ के मोती के हार …

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अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 7

अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 7   तट पर नव वसन्त करता था वन की सैर जब किसी क्षीण-कटि तटिनी के तट तरुणी ने रक्खे थे अपने पैर। नहाने को सरि वह आई थी, साथ वसन्ती रँग की, चुनी हुई, साड़ी लाई थी। काँप रही थी वायु, प्रीति …

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अर्चना -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 3

अर्चना -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 3 दो सदा सत्संग मुझको दो सदा सत्संग मुझको। अनृत से पीछा छुटे, तन हो अमृत का रंग मुझको। अशन-व्यसन तुले हुए हों, खुले अपने ढंग; सत्य अभिधा साधना हो, बाधना हो व्यंग, मुझको। लगें तुमसे तन-वचन-मन, दूर रहे अनंग; बाढ़ के जल …

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अर्चना -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 8

अर्चना -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 8  हार गई मैं तुम्हें जगाकर हार गई मैं तुम्हें जगाकर, धूप चढ़ी प्रखर से प्रखरतर। वर्जन के जो वज्र-द्वार हैं, क्या खुलने के भी किंवार हैं? प्राण पवन से पार-पार हैं, जैसे दिनकर निष्कर, निश्शर। पंच विपंची से विहीन हैं; जैसे जन …

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अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 5

अनामिका -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला  -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala   Part 5   प्रगल्भ प्रेम आज नहीं है मुझे और कुछ चाह, अर्धविकव इस हॄदय-कमल में आ तू प्रिये, छोड़ कर बन्धनमय छ्न्दों की छोटी राह! गजगामिनि, वह पथ तेरा संकीर्ण, कण्टकाकीर्ण, कैसे होगी उससे पार? काँटों में अंचल के तेरे तार निकल जायेंगे …

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