स्वर्णधूलि -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 4

स्वर्णधूलि -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 4 अंतर्वाणी निःस्वर वाणी नीरव मर्म कहानी! अंतर्वाणी! नव जीवन सौन्दर्य में ढलो सृजन व्यथा गांभीर्य में गलो चिर अकलुष बन विहँसो हे जीवन कल्याणी, निःस्वर वाणी! व्यथा व्यथा रे जगत की प्रथा, जीवन कथा व्यथा! व्यथा मथित हो ज्ञान ग्रथित हो सजल सफल …

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ग्राम्या -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 2

ग्राम्या -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 2 रेखा चित्र चाँदी की चौड़ी रेती, फिर स्वर्णिम गंगा धारा, जिसके निश्चल उर पर विजड़ित रत्न छाय नभ सारा! फिर बालू का नासा लंबा ग्राह तुंड सा फैला, छितरी जल रेखा- कछार फिर गया दूर तक मैला! जिस पर मछुओं की मँड़ई, औ’ …

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खादी के फूल -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 2

खादी के फूल -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 2 अंतर्धान हुआ फिर देव विचर धरती पर अंतर्धान हुआ फिर देव विचर धरती पर, स्वर्ग रुधिर से मर्त्यलोक की रज को रँगकर! टूट गया तारा, अंतिम आभा का दे वर, जीर्ण जाति मन के खँडहर का अंधकार हर! अंतर्मुख हो गई …

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मधुज्वाल -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 4

मधुज्वाल -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 4 इस जग की चल छाया चित्रित इस जग की चल छाया चित्रित रंग यवनिका के भीतर छिप जाएँगें जब हम प्रेयसि, जीवन का छल अभिनय कर! रंग धरा पर हास अश्रु के दृश्य रहेंगे इसी प्रकार हम न रहेंगे, मायामय का पर न …

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स्वर्णधूलि -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 1

स्वर्णधूलि -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 1 युगागम आज से युगों का सगुण विगत सभ्यता का गुण, जन जन में, मन मन में हो रहा नव विकसित, नव्य चेतना सर्जित! आ रहा भव नूतन जानता जग का मन स्वर्ण हास्य मय नूतन भावी मानव जीवन, आनता अंतर्मन! जा रहा पुराचीन …

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ग्राम्या -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 1

ग्राम्या -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 1 उद्बोधन खोलो वासना के वसन, नारी नर! वाणी के बहु रूप, बहु वेश, बहु विभूषण, खोलो सब, बोलो सब, एक वाणी,-एक प्राण, एक स्वर! वाणी केवल भावों-विचारों की वाहन, खोलो भेद भावना के मनोवसन नारी नर! खोलो जीर्ण विश्वासों, संस्कारों के शीर्ण वसन, …

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उत्तरा -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 1

उत्तरा -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 1 अंतर्व्यथा ज्योति द्रवित हो, हे घन ! छाया संशय का तम, तृष्णा भरती गर्जन, ममता विद्युत् नर्तन करती उर में प्रतिक्षण ! करुणा धारा में झर स्नेह अश्रु बरसा कर, व्यथा भार उर का हर शति करो आकुल मन ! तुम अंतर के …

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मधुज्वाल -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 5

मधुज्वाल -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 5 मधुर साक़ी, उर का मधु पात्र मधुर साक़ी, उर का मधु पात्र प्रीति से भर दे तू प्रति बार, जन्म जन्मों की मेरी साध सुरा हो मेरी प्राणाधार! मुझे कर मधु स्वप्नों में लीन, मृत्यु हो मेरी मदिराधीन! बनूँ मैं वन मृग, हाला …

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स्वर्णधूलि -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 2

स्वर्णधूलि -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 2 मुझे असत् से मुझे असत् से ले जाओ हे सत्य ओर मुझे तमस से उठा, दिखाओ ज्योति छोर, मुझे मृत्यु से बचा, बनाओ अमृत भोर! बार बार आकर अंतर में हे चिर परिचित, दक्षिण मुख से, रुद्र, करो मेरी रक्षा नित! स्वर्णधूलि स्वर्ण …

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ग्राम्या -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 5

ग्राम्या -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 5 ग्राम देवता राम राम, हे ग्राम देवता, भूति ग्राम ! तुम पुरुष पुरातन, देव सनातन, पूर्णकाम, शिर पर शोभित वर छत्र तड़ित स्मित घन श्याम, वन पवन मर्मरित-व्यजन, अन्न फल श्री ललाम। तुम कोटि बाहु, वर हलधर, वृष वाहन बलिष्ठ, मित असन, निर्वसन, …

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