मुक्तक-शंकर कंगाल नहीं-शंकर लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankar Lal Dwivedi
मुक्तक-शंकर कंगाल नहीं-शंकर लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankar Lal Dwivedi भँवर मुझको डुबाएँ तो, डुबाने दो, न रोना तुम। तरंगें तूल पर है; स्वर हवाओं में न खोना तुम।। पुकारों पर दया करती नहीं मझधार की बाँहें- किनारे! धूल हैं केवल; कहीं आँसू न बोना तुम।। मखमली कालीन घूरों पर बिछा …