फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu

फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu सुंदरियो!-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu साजन! होली आई है!-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu यह फागुनी हवा-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar …

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सुंदरियो!-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu

सुंदरियो!-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu सुंदरियो-यो-यो हो-हो अपनी-अपनी छातियों पर दुद्धी फूल के झुके डाल लो ! नाच रोको नहीं। बाहर से आए हुए इस परदेशी का जी साफ नहीं। इसकी आँखों में कोई आँखें न डालना। यह ‘पचाई’ नहीं बोतल का दारू पीता है। सुंदरियो जी …

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साजन! होली आई है!-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu

साजन! होली आई है!-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu साजन! होली आई है! सुख से हँसना जी भर गाना मस्ती से मन को बहलाना पर्व हो गया आज- साजन! होली आई है! हँसाने हमको आई है! साजन! होली आई है! इसी बहाने क्षण भर गा लें दुखमय जीवन …

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यह फागुनी हवा-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu

यह फागुनी हवा-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu यह फागुनी हवा मेरे दर्द की दवा ले आई…ई…ई…ई मेरे दर्द की दवा! आंगन ऽ बोले कागा पिछवाड़े कूकती कोयलिया मुझे दिल से दुआ देती आई कारी कोयलिया-या मेरे दर्द की दवा ले के आई-ई-दर्द की दवा! वन-वन गुन-गुन बोले …

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मेरा मीत सनीचर-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu

मेरा मीत सनीचर-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu पद्य नहीं यह, तुकबंदी भी नहीं, कथा सच्ची है कविता-जैसी लगे भले ही, ठाठ गद्य का ही है। बहुत दिनों के बाद गया था, उन गांवों की ओर खिल-खिल कर हँसते क्षण अब भी, जहाँ मधुर बचपन के किंतु वहां …

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मिनिस्टर मंगरू-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu

मिनिस्टर मंगरू-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu ‘कहाँ गायब थे मंगरू?’-किसी ने चुपके से पूछा। वे बोले- यार, गुमनामियाँ जाहिल मिनिस्टर था। बताया काम अपने महकमे का तानकर सीना- कि मक्खी हाँकता था सबके छोए के कनस्टर का। सदा रखते हैं करके नोट सब प्रोग्राम मेरा भी, कि …

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मँगरू मियाँ के नए जोगीड़े-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu

मँगरू मियाँ के नए जोगीड़े-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu “मँगरू मियाँ के नए जोगीड़े” “ताक धिन्ना धिन, धिन्नक तिन्ना, ताक धिनाधिन धिन्नक तिन्नक । जोगीजी सर – र – र, जोगीजी सर – र – र — — एक रात में महल बनाया, दूसरे दिन फुलवारी तीसरी …

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बहुरूपिया-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu

बहुरूपिया-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu दुनिया दूषती है हँसती है उँगलियाँ उठा कहती है … कहकहे कसती है – राम रे राम! क्या पहरावा है क्या चाल-ढाल सबड़-झबड़ आल-जाल-बाल हाल में लिया है भेख? जटा या केश? जनाना-ना-मर्दाना या जन ……. अ… खा… हा… हा.. ही.. ही… …

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जागो मन के सजग पथिक ओ!-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu

जागो मन के सजग पथिक ओ!-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu मेरे मन के आसमान में पंख पसारे उड़ते रहते अथक पखेरू प्यारे-प्यारे! मन की मरु मैदान तान से गूँज उठा थकी पड़ी सोई-सूनी नदियाँ जागीं तृण-तरू फिर लह-लह पल्लव दल झूम रहा गुन-गुन स्वर में गाता आया …

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गत मास का साहित्य!!-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu

गत मास का साहित्य!!-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Phanishwar Nath Renu गत माह, दो बड़े घाव धरती पर हुए, हमने देखा नक्षत्र खचित आकाश से दो बड़े नक्षत्र झरे!! रस के, रंग के– दो बड़े बूंद ढुलक-ढुलक गए। कानन कुंतला पृथ्वी के दो पुष्प गंधराज सूख गए!! (हमारे चिर नवीन …

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