कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

बस एक लम्हे का झगड़ा था-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar प्यार वो बीज है-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar बोलिये सुरीली बोलियाँ-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar यारम-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar  मकान की ऊपरी मंज़िल पर-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem …

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बस एक लम्हे का झगड़ा था-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

बस एक लम्हे का झगड़ा था-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar बस एक लम्हे का झगड़ा था दर-ओ-दीवार पे ऐसे छनाके से गिरी आवाज़ जैसे काँच गिरता है हर एक शय में गई उड़ती हुई, चलती हुई, किरचें नज़र में, बात में, लहजे में, सोच और साँस के अन्दर लहू होना था …

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प्यार वो बीज है-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

प्यार वो बीज है-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar प्यार कभी इकतरफ़ा होता है; न होगा दो रूहों के मिलन की जुड़वां पैदाईश है ये प्यार अकेला नहीं जी सकता जीता है तो दो लोगों में मरता है तो दो मरते हैं प्यार इक बहता दरिया है झील नहीं कि जिसको किनारे …

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बोलिये सुरीली बोलियाँ-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

बोलिये सुरीली बोलियाँ-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar बोलिये सुरीली बोलियाँ खट्टी मीठी आँखों की रसीली बोलियाँ रात में घोले चाँद की मिश्री दिन के ग़म नमकीन लगते हैं नमकीन आँखों की नशिली बोलियाँ गूंज रहे हैं डूबते साये शाम की खुशबू हाथ ना आये गूंजती आँखों की नशिली बोलियाँ

यारम-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

यारम-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar हम चीज़ हैं बड़े काम की, यारम हमें काम पे रख लो कभी, यारम हम चीज़ हैं बड़े काम की, यारम हो सूरज से पहले जगायेंगे और अखबार की सब सुर्खियाँ हम गुनगुनाएँगे पेश करेंगे गरम चाय फिर कोई खबर आई न पसंद तो एंड बदल …

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 मकान की ऊपरी मंज़िल पर-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

मकान की ऊपरी मंज़िल पर-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता वो कमरे बंद हैं कबसे जो 24 सीढियां जो उन तक पहुँचती थी, अब ऊपर नहीं जाती मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता वहाँ कमरों में, इतना याद है मुझको …

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मेरे रौशनदान में बैठा एक कबूतर-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

मेरे रौशनदान में बैठा एक कबूतर-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar मेरे रौशनदार में बैठा एक कबूतर जब अपनी मादा से गुटरगूँ कहता है लगता है मेरे बारे में, उसने कोई बात कही। शायद मेरा यूँ कमरे में आना और मुख़ल होना उनको नावाजिब लगता है। उनका घर है रौशनदान में और …

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 बारिश आने से पहले-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

बारिश आने से पहले-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar बारिश आने से पहले बारिश से बचने की तैयारी जारी है सारी दरारें बन्द कर ली हैं और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है खिड़की जो खुलती है बाहर उसके ऊपर भी एक छज्जा खींच दिया है मेन सड़क से …

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एक नदी की बात सुनी…-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

एक नदी की बात सुनी…-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar एक नदी की बात सुनी… इक शायर से पूछ रही थी रोज़ किनारे दोनों हाथ पकड़ कर मेरे सीधी राह चलाते हैं रोज़ ही तो मैं नाव भर कर, पीठ पे लेकर कितने लोग हैं पार उतार कर आती हूँ । रोज़ …

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दरख़्त रोज़ शाम का बुरादा भर के शाखों में-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar

दरख़्त रोज़ शाम का बुरादा भर के शाखों में-कविता-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar दरख़्त रोज़ शाम का बुरादा भर के शाखों में पहाड़ी जंगलों के बाहर फेंक आते हैं! मगर वो शाम… फिर से लौट आती है, रात के अन्धेरे में वो दिन उठा के पीठ पर जिसे मैं जंगलों में …

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