नंद का ब्रज प्रत्यागमन-मथुरा गमन-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji

नंद का ब्रज प्रत्यागमन-मथुरा गमन-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji बेगि ब्रज कौं फिरिए नँदराइ । हमहिं तुमहिं सुत तात कौ नातौं, और पर्‌यौ हैं आइ ॥ बहुत कियौ प्रतिपाल हमारौ, सो नहिं जी तैं जाइ । जहाँ रहैं तहँ तहाँ तुम्हारे, डार्‌यौ जनि बिसराइ ॥ जननि जसोदा …

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बलभद्र ब्रज यात्रा-द्वारिका चरित-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

बलभद्र ब्रज यात्रा-द्वारिका चरित-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji श्याम राम के गुन नित गाऊँ । स्याम राम ही सौं चित लाऊँ ॥ एक बार हरि निज पुर छाए । हलधर जी वृंदाबन गए रथ देखत लोगनि सुख पाए । जान्यौ स्याम राम दोउ आए । नंद जसोमति …

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मथुरा प्रवेश तथा कंस बध-मथुरा गमन-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji

मथुरा प्रवेश तथा कंस बध-मथुरा गमन-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji बूझत हैं अक्रूरहिं स्याम । तरनि किरनि महलनि पर झाईं, इहै मधुपुरी नाम ॥ स्रवननि सुनत रहत हे जाकौं, सो दरसन भए नैन । कंचन कोट कँगूरनि की छबि , मानौ बैठे मैन ॥ उपवन बन्यौ चहूँधा …

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सुदामा चरित-द्वारिका चरित-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

सुदामा चरित-द्वारिका चरित-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji कंत सिधारी मधुसूदन पै सुनियत हैं वे मीत तुम्हारे । बाल सखा अरु बिपति बिभंजन, संकट हरन मुकुंद मुरारे ॥ और जु अतुसय प्रीति देखियै, निज तन मन की प्रीति बिसारे । सरबस रीझि देत भक्तनि खौं, रंक नृपति काहूँ …

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गोपी बचन तथा ब्रजदशा-मथुरा गमन-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji

गोपी बचन तथा ब्रजदशा-मथुरा गमन-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji ग्वारनि कही ऐसी जाइ । भए हरि मधुपुरी राजा, बड़े बंस कहाइ ॥ सूत मागध बदत बिरदनि, बरनि बसुद्यौ तात । राज-भूषन अंग भ्राजत, अहिर कहत लजात ॥ मातु पितु बसुदेव दैवै, नंद जसुमति नाहिं । यह सुनत …

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ब्रजनारी पथिक संवाद-द्वारिका चरित-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

ब्रजनारी पथिक संवाद-द्वारिका चरित-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji तब तैं बहुरि न कोऊ आयौ । वहै जु एक बेर ऊधौ सौं, कछु संदेसौ पायौ ॥ छिन छिन सुरति करत जदुपति की, परत न मन समुझायौ । गोकुलनाथ हमारैं हित लगि, लिखि हू क्यौं न पठायौ ॥ यहै …

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गोपी विरह-मथुरा गमन-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji

गोपी विरह-मथुरा गमन-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji चलत गुपाल के सब चले । यह प्रीतम सौं प्रीति निरंतर, रहे न अर्ध पले । धीरज पहिल करी चलिबैं की, जैसी करत भले । धीर चलत मेरे नैननि देखे, तिहिं छिनि आँसु हले ॥ आँसु चलत मेरी बलयनि देखे, …

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रुक्मिणी कृष्ण संवाद-द्वारिका चरित-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

रुक्मिणी कृष्ण संवाद-द्वारिका चरित-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji रुकमिनि बूझति हैं गोपालहिं । कहौ बात अपने गोकुल की कितिक प्रीति ब्रजबालहिं ॥ तब तुम गाइ चरावन जाते, उर धरते बनमालहिं । कहा देखि रीझे राधा सौं, सुंदर नैन बिसालहिं ॥ इतनी सुनत नैन भरि आए, प्रेम बिबस …

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उद्धव को ब्रज भेजना-उद्धव संदेश-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji

उद्धव को ब्रज भेजना-उद्धव संदेश-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji अंतरजामी कुंवर कन्हाई । गुरु गृह पढ़त हुते जहँ विद्या, तहँ ब्रज-बासिनि की सुधि आई ॥ गुरु सौं कह्यौ जोरि कर दोऊ, दछिना कहौ सो देउँ मँगाई । गुरु-पतनी कह्यौ पुत्र हमारे, मृतक भये सो देहु जिवाई ॥ …

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कुरुक्षेत्र में कृष्ण-ब्रजवासी भेंट-द्वारिका चरित-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

कुरुक्षेत्र में कृष्ण-ब्रजवासी भेंट-द्वारिका चरित-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji ब्रज बासिन कौ हेतु, हृदय मैं राखि मुरारी । सब जादव सौं कह्यौ, बैठि कै सभा मझारी ॥ बड़ौ परब रवि-ग्रहन, कहा कहौं तासु बड़ाई । चलौ सकल कुरुखेत, तहाँ मिलि न्हैयै जाई ॥ तात, मात निज नारि …

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