द्वादश सर्ग  -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 13

द्वादश सर्ग  -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 13 द्वादश सर्ग ढाल लेखनी, सफल अन्त में मसि भी तेरी, तनिक और हो जाय असित यह निशा अँधेरी। ठहर तमी, कृष्णाभिसारिके, कण्टक, कढ़ जा, बढ़ संजीवनि, आज मृत्यु के गढ़ पर चढ़ जा! झलको, झलमल भाल-रत्न, हम सबके झलको, हे नक्षत्र, …

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एकादश सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 12

एकादश सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 12 एकादश सर्ग जयति कपिध्वज के कृपालु कवि, वेद-पुराण-विधाता व्यास; जिनके अमरगिराश्रित हैं सब धर्म, नीति, दर्शन, इतिहास! बरसें बीत गईं, पर अब भी है साकेत पुरी में रात, तदपि रात चाहै जितनी हो, उसके पीछे एक प्रभात। ग्रास हुआ आकाश, भूमि क्या, …

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दशम सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 11

दशम सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 11 दशम सर्ग चिरकाल रसाल ही रहा जिस भावज्ञ कवीन्द्र का कहा, जय हो उस कालिदास की- कविता-केलि-कला-विलास की! रजनी! उस पार कोक है; हत कोकी इस पार, शोक है! शत सारव वीचियाँ वहाँ मिलते हा-रव बीच में जहाँ! लहरें उठतीं, लथेड़तीं, धर …

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नवम सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 10

नवम सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 10 नवम सर्ग दो वंशों में प्रकट करके पावनी लोक-लीला, सौ पुत्रों से अधिक जिनकी पुत्रियाँ पूतशीला; त्यागी भी हैं शरण जिनके, जो अनासक्त गेही, राजा-योगी जय जनक वे पुण्यदेही, विदेही। विफल जीवन व्यर्थ बहा, बहा, सरस दो पद भी न हुए हहा! …

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अष्ठम सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 9

अष्ठम सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 9 अष्ठम सर्ग चल, चपल कलम, निज चित्रकूट चल देखें, प्रभु-चरण-चिन्ह पर सफल भाल-लिपि लेखें। सम्प्रति साकेत-समाज वहीं है सारा, सर्वत्र हमारे संग स्वदेश हमारा। तरु-तले विराजे हुए,-शिला के ऊपर, कुछ टिके,-घनुष की कोटि टेक कर भू पर, निज लक्ष-सिद्धि-सी, तनिक घूमकर तिरछे, …

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सप्तम सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 8

सप्तम सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 8 सप्तम सर्ग ’स्वप्न’ किसका देखकर सविलास कर रही है कवि-कला कल-हास? और ’प्रतिमा’ भेट किसकी भास, भर रही है वह करुण-निःश्वास? छिन्न भी है, भिन्न भी है, हाय! क्यों न रोवे लेखनी निरुपाय? क्यों न भर आँसू बहावे नित्य? सींच करुणे, सरस …

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षष्ठ सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 7

षष्ठ सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 7 षष्ठ सर्ग तुलसी, यह दास कृतार्थ तभी- मुँह में हो चाहे स्वर्ण न भी, पर एक तुम्हारा पत्र रहे, जो निज मानस-कवि-कथा कहे। उपमे, यह है साकेत यहाँ, पर सौख्य, शान्ति, सौभाग्य कहाँ? इसके वे तीनों चले गये, अनुगामी पुरजन छले गये। …

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पंचम सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 6

पंचम सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 6 पंचम सर्ग वनदेवीगण, आज कौन सा पर्व है, जिस पर इतना हर्ष और यह गर्व है? जाना, जाना, आज राम वन आ रहे; इसी लिए सुख-साज सजाये जा रहे। तपस्वियों के योग्य वस्तुओं से सजा, फहराये निज भानु-मूर्तिवाली ध्वजा, मुख्य राजरथ देख …

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चतुर्थ सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 5

चतुर्थ सर्ग -साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 5 चतुर्थ सर्ग करुणा-कंजारण्य रवे! गुण-रत्नाकर, आदि-कवे! कविता-पितः! कृपा वर दो, भाव राशि मुझ में भर दो। चढ़ कर मंजु मनोरथ में, आकर रम्य राज-पथ में, दर्शन करूँ तपोवन का, इष्ट यही है इस जन का। सुख से सद्यः स्नान किये, पीताम्बर परिधान …

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तृतीय सर्ग-साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 4

तृतीय सर्ग-साकेत-मैथिलीशरण गुप्त -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maithilisharan Gupt Saket Part 4 तृतीय सर्ग जहाँ अभिषेक-अम्बुद छा रहे थे, मयूरों-से सभी मुद पा रहे थे, वहाँ परिणाम में पत्थर पड़े यों, खड़े ही रह गये सब थे खड़े ज्यों। करें कब क्या, इसे बस राम जानें, वही अपने अलौकिक काम जानें। कहाँ है कल्पने! …

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