साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar  तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar मैं जिसे …

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 तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं मैं बेपनाह अँधेरों को सुब्ह कैसे कहूँ मैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहीं तेरी ज़ुबान है झूठी ज्म्हूरियत की …

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अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार आप बच कर चल सकें ऐसी कोई सूरत नहीं रहगुज़र घेरे हुए मुर्दे खड़े हैं बेशुमार …

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मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ एक जंगल है तेरी आँखों में मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ तू किसी रेल-सी गुज़रती है मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ हर तरफ़ ऐतराज़ होता है मैं अगर रौशनी …

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 होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिये गूँगे निकल पड़े हैं, ज़ुबाँ की तलाश में सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिये बरसात आ गई तो …

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किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम किसी का हाथ उठ्ठा और अलकों तक चला आया वो बरगश्ता थे कुछ हमसे उन्हें क्योंकर यक़ीं आता चलो अच्छा हुआ …

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वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तगू मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है सामान कुछ नहीं है फटेहाल …

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बहुत सँभाल के रक्खी तो पाएमाल हुई-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

बहुत सँभाल के रक्खी तो पाएमाल हुई-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar बहुत सँभाल के रक्खी तो पाएमाल हुई सड़क पे फेंक दी तो ज़िंदगी निहाल हुई बड़ा लगाव है इस मोड़ को निगाहों से कि सबसे पहले यहीं रौशनी हलाल हुई कोई निजात की सूरत नहीं रही, …

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एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है एक बूढ़ा आदमी …

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 ये शफ़क़ शाम हो रही है अब-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar

ये शफ़क़ शाम हो रही है अब-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar ये शफ़क़ शाम हो रही है अब और हर गाम हो रही है अब जिस तबाही से लोग बचते थे वो सरे आम हो रही है अब अज़मते-मुल्क इस सियासत के हाथ नीलाम हो रही है …

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