प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra

प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra छोटी कविता-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra सूखता पानी-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra बदली रुचि, बदली आशाएं-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem …

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छोटी कविता-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra

छोटी कविता-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra   ‘हे ! प्रेम तुम्हे मैं करता हूँ ‘ कितने भारी, ये शब्द सरल, जिह्वा,तालू सब एक हुयी जब सोचा कह दूँ, तुम से मिल.. वाणी में शक्ति नहीं इतनी यह खुद कम्पित, उत्कंठा से आँखों से प्रणय-निवेदन कर स्पर्श …

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सूखता पानी-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra

सूखता पानी-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra   पानी तो रखो आंखों में पानी न सुखाओ धरती से, यह देह भी है पानी से बनी पानी न बहाओ, बेदर्दी से। मरुभूमि बनाओ मत जंगल मत मानव को कंकाल करो, मत इतनी बढ़ाओ लोलुपता मत धरती मां, बदहाल …

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बदली रुचि, बदली आशाएं-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra

बदली रुचि, बदली आशाएं-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra   हो गई शमित वह सूर्य – रश्मि थम गया है जीवन का प्रवाह, रुक गए शब्द, बन काल – बद्ध हर अक्षर करता, आह, आह! रुचि बदल लिया है प्रकृति ने अब कांटों की बिछावन, पथ पथ …

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मैं पुरुष हूं……रोना, है निषिद्ध-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra

मैं पुरुष हूं……रोना, है निषिद्ध-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra   मैं पुरुष हूं, रोना है निषिद्ध मैं अंतर्मन में, रोता हूं, पुरुषत्व – प्रकृति, मर्यादित है मैं अंतस्थल को भिगोता हूं। मेरी कोख नहीं, माना मैने संवेदना मगर, कोई कम तो नहीं! शारीरिक बल, ईश्वर प्रदत्त …

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प्रणय – निवेदन: फिर उपजेगा अधिकार नया-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra

प्रणय – निवेदन: फिर उपजेगा अधिकार नया-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra मैं टूटे फूटे शब्द लिए, कुछ इस कवि के, कुछ उस कवि के, लाया हूँ अपने छंदों में, अर्पित करता फिर एक बार, स्वीकार करो तो अच्छा है, स्वीकार न हो, तो !! रख देना …

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सांध्य राग-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra

सांध्य राग-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra   यह जीवन पथ, किस ओर चला मैं दीप जला कर खोजूं पथ, जीवन को और वृहत करने बढ़ चला श्वास का निर्बल रथ। क्या दीप बुझा कर संध्या का मैं तम – छाया की ओर बढूं निर्बल प्रकाश की …

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चौथा प्रहर-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra

चौथा प्रहर-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra   जिन्हें गोद में रखा बरसों तक अपने दुलार के आंगन में, वे गृह – बंदी कर, छोड़ गए, इस जन – अरण्य के कानन में। तुम भी तो नहीं हो, हे भार्या! जो भार मेरा, आधा सहती, उन दुर्बल …

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अंतिम स्वर-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra

अंतिम स्वर-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra   जब आर्तनाद की अंतिम ध्वनि टकराए स्वयं, अंतर्मन में, जब विकल सांध्य के गीत, टूट बिखरें अवशेषित जीवन में। जब सूर्य रश्मि काली होकर रातों की घातक धार बने, जब पूरा जगत सिमट कर के अंधेपन का संसार बने। …

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एक गीत-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra

एक गीत-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra   तुम पिछले कल को याद करो मैं अगली सुबह खोजता हूं, तुम सांध्य प्रीति में रमे रहो मैं सूरज की बाट जोहता हूं। मन, कितना पागल हुआ है रे! क्यों बात नही सुनता मेरी? रसधार रही नदियां कल तक …

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