बुतों के ज़र्द पैराहन में इत्र चम्पा जब महका -होली कविता -नज़ीर अकबराबादी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Nazeer Akbarabadi
बुतों के ज़र्द पैराहन में इत्र चम्पा जब महका -होली कविता -नज़ीर अकबराबादी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Nazeer Akbarabadi बुतों के ज़र्द पैराहन में इत्र चम्पा जब महका । हुआ नक़्शा अयाँ होली की क्या-क्या रस्म और रह का ।।१।। गुलाल आलूदः गुलचहरों के वस्फ़े रुख में निकले हैं । मज़ा क्या-क्या …