शीशों का मसीहा कोई नहीं-दस्ते सबा -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Faiz Ahmed Faiz
शीशों का मसीहा कोई नहीं-दस्ते सबा -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Faiz Ahmed Faiz मोती हो कि शीशा, जाम कि दुर जो टूट गया, सो टूट गया कब अश्कों से जुड़ सकता है जो टूट गया, सो छूट गया तुम नाहक़ टुकड़े चुन-चुन कर दामन में छुपाए बैठे हो शीशों …