शाम थी और बर्ग-ओ-गुल शल थे मगर सबा भी थी-गुमाँ-ग़ज़लें-जौन एलिया -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaun Elia
शाम थी और बर्ग-ओ-गुल शल थे मगर सबा भी थी-गुमाँ-ग़ज़लें-जौन एलिया -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaun Elia शाम थी और बर्ग-ओ-गुल शल थे मगर सबा भी थी एक अजीब सुकूत था एक अजब सदा भी थी एक मलाल का सा हाल महव था अपने हाल में रक़्स-ओ-नवा थे बे-तरफ़ महफ़िल-ए-शब बपा …