शाख़े-निहाले-ग़म-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,

शाख़े-निहाले-ग़म-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz, मैं एक बर्गे-ख़िज़ाँ की मानिंद कब से शाख़े-निहाले-ग़म पर लरज़ रहा हूँ मुझे अभी तक है याद वो जाँफ़िग़ार साअत कि जब बहारों की आख़िरी शाम मुझसे कुछ यूँ लिपट के रोई कि जैसे अब उम्र-भर न देखेगा हम में एक दूसरे …

Read more