शबनम की जंजीर-धूप और धुआँ -रामधारी सिंह ‘दिनकर’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Ramdhari Singh Dinkar
शबनम की जंजीर-धूप और धुआँ -रामधारी सिंह ‘दिनकर’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Ramdhari Singh Dinkar रचना तो पूरी हुई. जान भी है इसमें? पूछूं जो कोई बात, मूर्ति बतलायेगी ? लग जाय आग यदि किसी रोज देवालय में, चौंकेगी या यह खड़ी-खड़ी जल जायेगी ? ढाँचे में तो सब ठीक-ठीक उतरा, लेकिन, बेजान बुतों …