शगुन-शंका-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड एक-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar 

शगुन-शंका-जलते हुए वन का वसन्त-खण्ड एक-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar अब इस नुमाइश की छवियाँ आँखों में गड़ती हैं, क्या यह बुरा शगुन है ? पारसाल घर में मकड़ियाँ बहुत थीं, लेकिन जाले परेशान नहीं करते थे । बच्चे उद्धत तो थे- दिन भर हल्ला मचाते थे । फिर …

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