अधूरे ही-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra

अधूरे ही-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra   अधूरे मन से ही सही मगर उसने तुझसे मन की बात कही पुराने दिनों के अपने अधूरे सपने तेरे क़दमों में ला रखे उसने तो तू भी सींच दे उसके तप्त शिर को अपने आंसुओं से डाल दे उस पर अपने आँचल की …

Read more

शून्य होकर-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra

शून्य होकर-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra   शून्य होकर बैठ जाता है जैसे उदास बच्चा उस दिन उतना अकेला और असहाय बैठा दिखा शाम का पहला तारा काफ़ी देर तक नहीं आये दूसरे तारे और जब आये तब भी ऐसा नहीं लगा पहले ने उन्हें महसूस किया है या दूसरों …

Read more

काफ़ी दिन हो गये-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra

काफ़ी दिन हो गये-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra   काफ़ी दिन हो गये लगभग छै साल कहो तब से एक कोशिश कर रहा हूँ मगर होता कुछ नहीं है काम शायद कठिन है मौत का चित्र खींचना मैंने उसे सख्त ठण्ड की एक रात में देखा था नंग–धडंग नायलान के …

Read more

क्या हर्ज़ है-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra

क्या हर्ज़ है-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra   क्या हर्ज़ है अगर अब विदा ले लें हम एक सपने से जो तुमने भी देखा था और मैंने भी दोनों के सपने में कोई भी फ़र्क नहीं था ऐसा तो नहीं कहूँगा फ़र्क था मगर तफ़सील -भर का मूलतः सपना एक …

Read more

अपने आपमें-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra

अपने आपमें-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra   अपने आप में एक ओछी चीज़ है समय चीजों को टोड़ने वाला मिटाने वाला बने- बनाये महलों मकानों देशों मौसमों और ख़यालों को मगर आज सुबह से पकड़ लिये हैं मैंने इस ओछे आदमी के कान और वह मुझे बेमन से ही सही …

Read more

सागर से मिलकर-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra

सागर से मिलकर-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra   सागर से मिलकर जैसे नदी खारी हो जाती है तबीयत वैसे ही भारी हो जाती है मेरी सम्पन्नों से मिलकर व्यक्ति से मिलने का अनुभव नहीं होता ऐसा नहीं लगता धारा से धारा जुड़ी है एक सुगंध दूसरी सुगंध की ओर मुड़ी …

Read more

इदं न मम-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra

इदं न मम-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra   बड़ी मुश्किल से उठ पाता है कोई मामूली-सा भी दर्द इसलिए जब यह बड़ा दर्द आया है तो मानता हूँ कुछ नहीं है इसमें मेरा !  

बहुत छोटी जगह-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra

बहुत छोटी जगह-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra   बहुत छोटी जगह है घर जिसमें इन दिनों इजाज़त है मुझे चलने फिरने की फिर भी बड़ी गुंजाइश है इसमें तूफानों के घिरने की कभी बच्चे लड़ पड़ते हैं कभी खड़क उठते हैं गुस्से से उठाये-धरे जाने वाले बर्तन घर में रहने …

Read more

मुझे अफ़सोस है-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra

मुझे अफ़सोस है-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra   मुझे अफ़सोस है या कहिए मुझे वह है जिसे मैं अफ़सोस मानता रहा हूँ क्योंकि ज़्यादातर लोगों को ऐसे में नहीं होता वह जिसे मैं अफ़सोस मानता रहा हूँ मेरा मन आज शाम को शहर के बाहर जाकर और बैठकर किसी निर्जन …

Read more

तुम भीतर-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra

तुम भीतर-व्यक्तिगत-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra   तुम भीतर जो साधे हो और समेटे हों कविता नहीं बनेगी वह क्योंकि कविता तो बाहर है तुम्हारे अपने भीतर को बाहर से जोड़ोगे नहीं बाहर जिस-जिस तरफ़ जहाँ -जहाँ जा रहा है अपने भीतर को उस-उस तरफ़ वहाँ -वहां मोड़ोगे नहीं और …

Read more