चीर-हरन-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji
चीर-हरन-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji भवन रवन सबही बिसरायौ । नंद-नँदन जब तैं मन हरि लियौ, बिरथा जनम गँवायौ ॥ जप, तप व्रत, संजम, साधन तैं, द्रवित होत पाषान । जैसैं मिलै स्याम सुंदर बर, सोइ कीजै, नहिं आन । यहै मंत्र दृढ़ कियौ सबनि मिलि, …