चीर-हरन-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

चीर-हरन-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji भवन रवन सबही बिसरायौ । नंद-नँदन जब तैं मन हरि लियौ, बिरथा जनम गँवायौ ॥ जप, तप व्रत, संजम, साधन तैं, द्रवित होत पाषान । जैसैं मिलै स्याम सुंदर बर, सोइ कीजै, नहिं आन । यहै मंत्र दृढ़ कियौ सबनि मिलि, …

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गोवर्द्धनधारण-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

गोवर्द्धनधारण-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji बाजति नंद-अवास बधाई । बैठे खेलत द्वार आपनैं, सात बरस के कुँवर कन्हाई ॥ बैठे नंद सहित वृषभानुहिं, और गोप बैठे सब आई । थापैं देत घरिन के द्वारैं, गावतिं मंगल नारि बधाई ॥ पूजा करत इंद्र की जानी, आए स्याम …

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रास लीला-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

रास लीला-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji जबहिं बन मुरली स्रवन परी । चकित भईं गोप-कन्या सब, काम-धाम बिसरीं ॥ कुल मर्जाद बेद की आज्ञा, नैंकहुँ नहीं डरीं । स्याम-सिंधु, सरिता-ललना-गन, जल की ढरनि ढरीं ॥ अंग-मरदन करिबे कौं लागौं, उबटन तेल धरी । जो जिहिं भाँति …

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दान लीला-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

दान लीला-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji  ऐसौ दान माँगयै नहिं जौ, हम पैं दियौ न जाइ । बन मैं पाइ अकेली जुवतिनि, मारग रोकत धाइ ॥ घाट बाट औघट जमुना-तट, बातैं कहत बनाइ । कोऊ ऐसौ दान लेत है, कौनैं पठए सिखाइ ॥ हम जानतिं तुम …

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गोपिका अनुराग-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

गोपिका अनुराग-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji लोक-सकुच कुल-कानि तजौ । जैसैं नदी सिंधु कौं धावै वैसैंहि स्याम भजी ॥ मातु पिता बहु त्रास दिखायौ, नैकुँ न डरी, लजी । हारि मानि बैठे, नहिं लागति, बहुतै बुद्धि सजी ॥ मानति नहीं लोक मरजादा, हरि कैं रंग मजी …

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रूप-वर्णन-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

रूप-वर्णन-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji देखौ माई सुंदरता कौ सागर । बुधि-बिबेक बल पार न पावत, मगन होत मन नागर ॥ तनु अति स्याम अगाध अंबु-निधि, कटि पट पीत तरंग । चितवत चलत अधिक रुचि उपजति, भँवर परति सब अंग ॥ नैन-मीन, मकराकृत कुंडल, भुज सरि …

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पनघट लीला-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

पनघट लीला-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji पनघट रोके रहत कन्हाई । जमुना-जल कोउ भरन न पावै, देखत हीं फिर जाई ॥ तबहिं स्याम इक बुद्धि उपाई, आपुन रहे छपाई । तट ठाढ़े जे सखा संग के, तिनकौं लियौ बुलाई ॥ बैठार्‌यौ ग्वालनि कौंद्रुमतर, आपुन फिर-फिरि देखत …

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नेत्र अनुराग-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

नेत्र अनुराग-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji नैन न मेरे हाथ रहै । देखत दरस स्याम सुंदर कौ, जल की ढरनि बहे ॥ वह नीचे कौं धावत आतुर , वैसेहि नैन भए । वह तौ जाइ समात उदधि मैं, ये प्रति अंग रए ॥ यह अगाध कहुँ …

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चीर-हरन-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

चीर-हरन-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji भवन रवन सबही बिसरायौ । नंद-नँदन जब तैं मन हरि लियौ, बिरथा जनम गँवायौ ॥ जप, तप व्रत, संजम, साधन तैं, द्रवित होत पाषान । जैसैं मिलै स्याम सुंदर बर, सोइ कीजै, नहिं आन । यहै मंत्र दृढ़ कियौ सबनि मिलि, …

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वृंदावन प्रस्थान-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji 

वृंदावन प्रस्थान-वृंदावन लीला-सूर सुखसागर -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji महरि-महरि कैं मन यह आई । गोकुल होत उपद्रव दिन प्रति, बसिऐ बृंदावन मैं जाई । सब गोपनि मिलि सकटा साजे, सबहिनि के मन मैं यह भाई । सूर जमुन-तट डेरा दीन्हे, बरष के कुँवर कन्हाई ॥1॥