किराये का घर-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey
किराये का घर-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey किराये का घर रूखी ज़मीन की तरह है, जड़ें जमाने में बहुतेरी गर्मियाँ, बरसातें और जाड़े लग जाते हैं सोच रहा हूँ कविता के हिस्से में कौन-सा कमरा आएगा, मन को किधर बिखेरूँगा, पूरब में या पश्चिम में यहाँ उत्तर …