किराये का घर-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey 

किराये का घर-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey   किराये का घर रूखी ज़मीन की तरह है, जड़ें जमाने में बहुतेरी गर्मियाँ, बरसातें और जाड़े लग जाते हैं सोच रहा हूँ कविता के हिस्से में कौन-सा कमरा आएगा, मन को किधर बिखेरूँगा, पूरब में या पश्चिम में यहाँ उत्तर …

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पहला कदम्ब फूल-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey 

पहला कदम्ब फूल-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey   तुम्हें अपने जीवन की सन्ध्या में श्रावण मास का पहला कदम्ब फूल दे सकूँगा इस की कोई आशा नहीं थी, फिर भी रंग की बहार छा गयी है, फिर भी अपराल के आकाश में घटा घिरी है। सुनने में आया …

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वन की होली-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey 

वन की होली-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey   ऐसा लगा मानो धू-धू कर के आग जल रही हो, टोलों पर शेरों की जोड़ी छलाँग लगाती निकली हो; किंशुक के प्राचीन रक्त से फागुन लाल हो गया है, प्रकृति की यह कैसी आकांक्षा ! सुन्दर को मृत्यु से यह …

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आदिम-अन्तिम-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey 

आदिम-अन्तिम-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey   उस के चरणों में है अशोक पलाश, मैं ढोता हैं विवर्ण शिशिर । उस की आँखों में होली की रात है, मैं माघी भोर का आकाश हूँ। उस की देह में आदिम गौरव है, मैं ढोता हूँ अन्तिम तुषार, उस की हंसी …

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ये और वे-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey 

ये और वे-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey   ये फाल्गुन में महुआ की ज्यामितीय बहार से मुग्ध हो जाते हैं । अजेय विन्यास से डालों पर पत्रहीन फूल खिल उठते हैं, मानो किसी मजूर या किसान के देशी प्रतीक हों, तनिक भी मेद नहीं, सिर्फ़ पेशियाँ, झुलसे भीगे …

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अभिन्न स्वस्ति में-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey 

अभिन्न स्वस्ति में-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey   स्वर्णचम्पा की कान्ति अंग-अंग में झलकती है, शिरीष के मर्मर स्वरों में यही बात बताता हूँ, प्राकृतिक मन से प्रिया को कृष्णचूड़ा के रंग में रंगाता हूँ। नखमूलों में क्या पलाश ने अपनी पंखुरियां बिखरा दी हैं ? ओष्ठाधरों में …

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सूर्यास्त वेला में-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey 

सूर्यास्त वेला में-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey   गरमी का झुलसा दिन, जा कर भी नहीं जाता। जारुल के फूलों के बीच बच्चों का खेल थमने में ही नहीं आता, मैं कहता हूँ : धुन ही तो है अभी तो मैं मौजूद हूँ; फूल और ढेले- यही तो …

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मैं भी तो-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey 

मैं भी तो-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey   मैं भी तो, सिर्फ आँखों से नहीं, पूरे मन-प्राण से बादलों का भिखारी हूँ। झुलसी हुई मिट्टी के हाहाकार से मेरे स्नायुओं में भी मुमूर्षु अकाल भर जाता है, मेरी चेतना में भी हजारों सपिल दरारें पड़ जाती है, सूर्य …

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नींद नहीं, नींद के किनारे-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey 

नींद नहीं, नींद के किनारे-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey   नींद नहीं, नींद के किनारे जहाँ बाल का नीलाचल महानीलिमा में बिखर जाता है लगभग शरीर के कगार पर- मानो लगभग मानस की मुक्त सीमा पर, या आकाशभेदी, यद्यपि आकाश नहीं, चोटियों पर, शरीर की चेतना से सटे-सटे …

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अपने हाथों बजाओगे-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey 

अपने हाथों बजाओगे-स्मृति सत्ता भविष्यत् -विष्णु दे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vishnu Dey   सच जानो, बहुत देर हो गयी है । वापसी का समय बहुत पहले बीत चुका है, सौदागरों की फेरी घर लौट गयी है, अब गीदड़ सोचते हैं वे भेड़ियों के दल में हैं । सच जानो, वापसी का समय हो …

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