जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 2

जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 2 जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar  चार क़तऐ-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar  हिल-स्टेशन-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar  ज़ुर्म और सज़ा-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi …

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जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 

जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar दश्ते-जुनूँ वीरानियाँ, क़ह्ते-सुकूँ हैरानियाँ-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar  अजीब क़िस्सा है-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar  आरज़ू के मुसाफ़र-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar  कच्ची …

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चार क़तऐ-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 

चार क़तऐ-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar कत्थई आँखों वाली इक लड़की एक ही बात पर बिगड़ती है तुम मुझे क्यों नहीं मिले पहले रोज़ ये कह के मुझ से लड़ती है लाख हों हम में प्यार की बातें ये लड़ाई हमेशा चलती है उसके इक दोस्त से मैं …

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हिल-स्टेशन-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 

हिल-स्टेशन-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar घुल रहा है सारा मंज़र शाम धुंधली हो गयी चांदनी की चादर ओढ़े हर पहाड़ी सो गयी वादियों में पेड़ हैं अब नीलगूं परछाइयां उठ रहा है कोहरा जैसे चांदनी का हो धुंआ चाँद पिघला तो चट्टानें भी मुलायम हो गयीं रात की …

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ज़ुर्म और सज़ा-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 

ज़ुर्म और सज़ा-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar हाँ गुनहगार हूँ मैं जो सज़ा चाहे अदालत देदे आपके सामने सरकार हूँ मैं मुझको इकरार कि मैंने इक दिन ख़ुद को नीलाम किया और राज़ी-बरज़ा सरेबाज़ार, सरेआम किया मुझको कीमत भी बहुत ख़ूब मिली थी लेकिन मैंने सौदे में ख़यानत …

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बहाना ढूँढते रहते हैं कोई रोने का-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 

बहाना ढूँढते रहते हैं कोई रोने का-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar बहाना ढूँढते रहते हैं कोई रोने का हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का जो फ़स्ल ख़्वाब की तैयार है …

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दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 

दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग जीवन-जीवन हमने जग में खेल यही होते देखा धीरे-धीरे जीती दुनिया धीरे-धीरे …

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मेरी दुआ है-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 

मेरी दुआ है-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar ख़ला के गहरे समुंदरों में अगर कहीं कोई है जज़ीरा जहाँ कोई साँस ले रहा है जहाँ कोई दिल धड़क रहा है जहाँ ज़ेहानत ने इल्म का जाम पी लिया है जहाँ के बासी ख़ला के गहरे समुंदरों में उतारने को …

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सुबह की गोरी-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 

सुबह की गोरी-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar रात की काली चादर ओढ़े मुंह को लपेटे सोई है कब से रूठ के सब से सुबह की गोरी आँख न खोले मुंह से न बोले जब से किसी ने कर ली है सूरज की चोरी आओ चल के सुरज ढूंढे …

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किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी इतनी कसीली बात लिखूँ-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar 

किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी इतनी कसीली बात लिखूँ-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी इतनी कसीली बात लिखूँ शे’र की मैं तहज़ीब बना हूँ या अपने हालात लिखूँ ग़म नहीं लिक्खूँ क्या मैं ग़म को जश्न लिखूँ क्या मातम को जो देखे हैं मैं …

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