दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 4

दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 4 रोते-रोते जायँ सब, हँसता जाय न कोय हँसता-हँसता जाय तो, उसका जनम न होय।   मिटती नहीं सुगंध रे ! भले झरें सब फूल यही सार अस्तित्व का, यही ज्ञान का मूल।   फल तेरे हाथों नहीं, कर्म है तेरे …

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दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections

दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 3 दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 2 दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 1 गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal …

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दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 3

दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 3   मीरा ने संसार को, दिया नाचता धर्म उसके स्वर में है छुपा, वंशीधर का मर्म।   भक्तों में कोई नहीं, बड़ा सूर से नाम उसने आँखों के बिना, देख लिये घनश्याम   तुलसी का तन धारकर, भक्ति हुई साकार …

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दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 2

दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 2   सेक्युलर होने का उन्हें जब से चढ़ा जुनून पानी लगता है उन्हें हर हिन्दू का खून   हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान   रहा चिकित्साशास्त्र जो जनसेवा का कर्म आज डॉक्टरों …

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दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 1

दोहे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj Collections 1 मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयार बड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार भारत माँ के नयन दो हिन्दू-मुस्लिम जान नहीं एक के बिना हो दूजे की पहचान बिना दबाये रस न दें ज्यों नींबू और आम दबे बिना पूरे …

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गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj  2

हाइकु -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj   गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारो-ग़ज़लें -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा-ग़ज़लें -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj जब भी इस शहर …

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हाइकु -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj  

हाइकु -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj ओस की बूंद फूल पर सोई जो धूल में मिली वो हैं अपने जैसे देखे हैं मैंने कुछ सपने किसको मिला वफा का दुनिया में वफा हीं सिला तरना है जो भव सागर यार कर भ्रष्टाचार क्यों शरमाए तेरा ये बांकपन सबको …

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गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारो-ग़ज़लें -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj

गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारो-ग़ज़लें -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारो, कि भीगें हम भी ज़रा संग-संग फिर यारों । यह रिमझिमाती निशा और ये थिरकता सावन, है याद आने लगा इक प्रसंग फिर यारो । किसे पता है कि कबतक रहेगा …

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बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा-ग़ज़लें -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj

बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा-ग़ज़लें -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा वो आदमी भी यहाँ हमने बदचलन देखा ख़रीदने को जिसे कम थी दौलते दुनिया किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन …

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जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला-ग़ज़लें -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj

जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला-ग़ज़लें -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला, मेरे स्वागत को हर एक जेब से ख़ंजर निकला । तितलियों फूलों का लगता था जहाँ पर मेला, प्यार का गाँव वो बारूद …

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