विप्रलब्धा-कनुप्रिया-इतिहास- धर्मवीर भारती-HindiPoetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dharamvir Bharati

विप्रलब्धा-कनुप्रिया-इतिहास- धर्मवीर भारती-HindiPoetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dharamvir Bharati बुझी हुई राख, टूटे हुए गीत, डूबे हुए चाँद, रीते हुए पात्र, बीते हुए क्षण-सा – – मेरा यह जिस्म कल तक जो जादू था, सूरज था, वेग था तुम्हारे आश्लेष में आज वह जूड़े से गिरे जुए बेले-सा टूटा है, म्लान है दुगुना …

Read more