विपक्षिणी-आत्मा की आँखें -रामधारी सिंह ‘दिनकर’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Ramdhari Singh Dinkar
विपक्षिणी-आत्मा की आँखें -रामधारी सिंह ‘दिनकर’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Ramdhari Singh Dinkar (एक रमणी के प्रति जो बहस करना छोड़कर चुप हो रही) क्षमा करो मोहिनी विपक्षिणी! अब यह शत्रु तुम्हारा हार गया तुमसे विवाद में मौन-विशिख का मारा। यह रण था असमान, लड़ा केवल मैं इस आशय से, तुमसे मिली हार भी …