आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri
आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे कलयुगी गोपियों को फिर से नचा दे आके कान्हा तू फिर से बंशी बजा दे कर रहे भष्ट्राचार और भष्ट्राचारियों को तू सजा दे बढ़ रहे अत्याचार और अत्याचारियों को मिटा …