रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले-ग़ज़ल-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar 

रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले-ग़ज़ल-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले न जाने कौन सी मिट्टी …

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