राहु-धूप और धुआँ -रामधारी सिंह ‘दिनकर’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Ramdhari Singh Dinkar 

राहु-धूप और धुआँ -रामधारी सिंह ‘दिनकर’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Ramdhari Singh Dinkar चेतनाहीन ये फूल तड़पना क्या जानें ? जब भी आ जाती हवा की पग बढाते हैं । झूलते रात भर मंद पवन के झूलों पर, फूटी न किरण की धार कि चट खिल जाते हैं । लेकिन, मनुष्य का हाल ? …

Read more