रामु सिमरु पछुताहिगा मन-शब्द-कबीर जी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Kabir Ji

रामु सिमरु पछुताहिगा मन-शब्द-कबीर जी -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Kabir Ji रामु सिमरु पछुताहिगा मन ॥ पापी जीअरा लोभु करतु है आजु कालि उठि जाहिगा ॥१॥ रहाउ ॥ लालच लागे जनमु गवाइआ माइआ भरम भुलाहिगा ॥ धन जोबन का गरबु न कीजै कागद जिउ गलि जाहिगा ॥१॥ जउ जमु आइ केस …

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