भिक्षा खावै मांगकै, रहै जहां-तहं सोय-ज्ञान-वैराग्य कुण्डलियाँ-गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai
भिक्षा खावै मांगकै, रहै जहां-तहं सोय-ज्ञान-वैराग्य कुण्डलियाँ-गिरिधर कविराय-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Giridhar Kavirai भिक्षा खावै मांगकै, रहै जहां-तहं सोय । काम ना राखे किसी सों, जो होवै सो होय ॥ जो होवै सो होय, विरक्त की यही निशानी । ब्रह्म-विद्या के बिना, और बोलै नहिं बानी ॥ कह गिरिधर कविराय, ज्ञान …