रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी-ग़ज़लें-भारतेंदु हरिश्चंद्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bharatendu Harishchandra 

रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी-ग़ज़लें-भारतेंदु हरिश्चंद्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bharatendu Harishchandra रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी रुके न हाथ अभी तक है दम में दम बाक़ी उठा दुई का जो पर्दा हमारी आँखों से तो काबे में भी रहा बस वही सनम बाक़ी बुला लो बालीं पे हसरत न दिल …

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