रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो-कविता -फ़िराक़ गोरखपुरी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Firaq Gorakhpuri

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो-कविता -फ़िराक़ गोरखपुरी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Firaq Gorakhpuri रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो टूट जाती है हर इक ज़ंजीर वहशत भी तो हो ज़िंदगी क्या मौत क्या दो करवटें हैं इश्क़ की सोने वाले चौंक उट्ठेंगे क़यामत भी तो हो ‘हरचे बादा-बाद’ के नारों से …

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