कितना खुद को मैं तुमसे छिपाता रहूंगा-कविता-मुनीश जस्सल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Munish Jassal
कितना खुद को मैं तुमसे छिपाता रहूंगा-कविता-मुनीश जस्सल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Munish Jassal कितना खुद को मैं तुमसे छिपाता रहूंगा । कब तलक तेरे साथ लुकाछुपी खेलता रहूँगा । तू भी तो बाहर तन्हा भटक रही है । सफेद धुंए के छल्लों में खूब मटक रही है । तू भी कहाँ हर दिन …