मुखौटे-बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh
मुखौटे-बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh तब, जब सब सो जाते दु:खीजन जग उठता। आसमान आँखों के आगे झूले नीचे शहर झूलता, और मकान तारों जैसे एक दूसरे से मिलते हैं – रात्रिकाल का निर्जन रस्ता, गालों पर आँसू की लम्बी रेखा जैसा समय तैरता जलस्रोत पर, …