मुकरियाँ-नये जमाने की मुकरी-भारतेंदु हरिश्चंद्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bharatendu Harishchandra 

मुकरियाँ-नये जमाने की मुकरी-भारतेंदु हरिश्चंद्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bharatendu Harishchandra —————— सब गुरुजन को बुरो बतावै । अपनी खिचड़ी अलग पकावै । भीतर तत्व न झूठी तेजी । क्यों सखि साजन ? नहिं अँगरेजी । —————— तीन बुलाए तेरह आवैं । निज निज बिपता रोइ सुनावैं । आँखौ फूटे भरा न पेट । क्यों …

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