मिल जाओ गले-कानन कुसुम-जयशंकर प्रसाद-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaishankar Prasad
मिल जाओ गले-कानन कुसुम-जयशंकर प्रसाद-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaishankar Prasad देख रहा हूँ, यह कैसी कमनीयता छाया-सी कुसुमित कानन में छा रही अरे, तुम्हारा ही यह तो प्रतिबिम्ब है क्यों मुझको भुलवाते हो इनमे ? अजी तुम्हें नहीं पाकर क्या भूलेगा कभी मेरा हृदय इन्ही काँटों के फूल में जग की …