माना कि रंग रंग तिरा पैरहन भी है-ग़ज़लें(तन्हा सफ़र की रात)-जाँ निसार अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaan Nisar Akhtar
माना कि रंग रंग तिरा पैरहन भी है-ग़ज़लें(तन्हा सफ़र की रात)-जाँ निसार अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaan Nisar Akhtar माना कि रंग रंग तिरा पैरहन भी है पर इस में कुछ करिश्मा-ए-अक्स-ए-बदन भी है अक़्ल-ए-मआश ओ हिकमत-ए-दुनिया के बावजूद हम को अज़ीज़ इश्क़ का दीवाना-पन भी है मुतरिब भी तू नदीम …