ये सबाहत की ज़ौ महचकां-गुल-ए-नग़मा-फ़िराक़ गोरखपुरी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Firaq Gorakhpuri

ये सबाहत की ज़ौ महचकां-गुल-ए-नग़मा-फ़िराक़ गोरखपुरी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Firaq Gorakhpuri ये सबाहत की ज़ौ महचकाँ]-महचकाँ ये पसीने की रौ कहकशाँ-कहकशाँ। इश्क़ था एक दिन दास्ताँ-दास्ताँ आज क्यों है वही बेज़बाँ-बज़बाँ। दिल को पाया नहीं मंज़िलों-मंज़िलों हम पुकार आये हैं कारवाँ-कारवाँ। इश्क़ भी शादमाँ-शादमाँ इन दिनों हुस्न भी इन दिनों मेहरबाँ-मेह्‌रबाँ। …

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