मरघट की धूप-धूप और धुआँ -रामधारी सिंह ‘दिनकर’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Ramdhari Singh Dinkar
मरघट की धूप-धूप और धुआँ -रामधारी सिंह ‘दिनकर’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Ramdhari Singh Dinkar तैर गये हम जिसे, कहो क्या वह समुद्र था जल का ? विषपरिवह सें विकल सिंधु या पिघलते हुए अनल का ? पुरस्कार में यही द्वीप पर, थे क्या हम पाने को ? झंझा पर होकर सवार थे चले …