मय-ख़ाना-ए-हस्ती में अक्सर हम अपना ठिकाना भूल गए -ग़ज़ल-अब्दुल हमीद अदम-Abdul Hameed Adam-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita,

मय-ख़ाना-ए-हस्ती में अक्सर हम अपना ठिकाना भूल गए -ग़ज़ल-अब्दुल हमीद अदम-Abdul Hameed Adam-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita, मय-ख़ाना-ए-हस्ती में अक्सर हम अपना ठिकाना भूल गए या होश में जाना भूल गए या होश में आना भूल गए अस्बाब तो बन ही जाते हैं तक़दीर की ज़िद को क्या कहिए इक जाम तो …

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