मय-कशी अब मिरी आदत के सिवा कुछ भी नहीं-ग़ज़लें-जाँ निसार अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaan Nisar Akhtar
मय-कशी अब मिरी आदत के सिवा कुछ भी नहीं-ग़ज़लें-जाँ निसार अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaan Nisar Akhtar मय-कशी अब मिरी आदत के सिवा कुछ भी नहीं ये भी इक तल्ख़ हक़ीक़त के सिवा कुछ भी नहीं फ़ित्ना-ए-अक़्ल के जूया मिरी दुनिया से गुज़र मेरी दुनिया में मोहब्बत के सिवा कुछ भी …